हिमाचल प्रदेश की हुई तबाही के पीछे कौन?

हिमाचल प्रदेश की हुई तबाही के पीछे कौन?

Himachal Flood News

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अर्जुन शर्मा
Himachal Flood News: कोई भी तबाही या आपदा हो, तूफान की उम्र तो बहुत छोटी होती है पर उसके घाव काफी देर तक रिस्ते रहते हैं। हिमाचल प्रदेश में एक सौ कुछ साल पहले एक भूपंप आया था जिसको इस देवभूमि में आई तबाही के इतिहास के पन्ने के तौर पर याद रखा गया है। वैसे पहाडों में बादल फटने व एक साथ हजारों क्यूसिक पानी के आ जाने से होने वाली तबाही को भयानक वाली श्रेणी की तबाही के फुटनोट में ही स्थान मिलता है। इसी प्रकार जिला मंडी, कुल्लू इत्यादि में बरसातों के मौसम में थोड़ी बहुत सड़कें तोड़ने वाली बाढ़ जैसी स्थिति तो कुछ सालों से देखने में आती रही है पर इस बार तो जैसे पूरे हिमाचल पर बुरे सायों के हुजूम ने मानों पूरी युद्धनीति के साथ गुरिल्ला हमला बोल दिया हो। हिमाचल में आई तबाही के निशान अभी नोट किये जाने के दौर में है, इनकी गिनती करने में काफी समय लगेगा। सोचिए कि तबाही के साथ नैटवर्क जाम के चलते अभी तक प्रलय की जो तस्वीरें सामने आई हैं वो नैशनल हाईवे के किनारे बसे इलाकों की हैं। अभी हिमाचल के दुर्गम व दूरदराज इलाकों के हालात की तस्वीर सामने आते आते कुछ हफ्ते लगेंगे। वैसे इस संदर्भ को लेकर कई बातें हैरान करने वाली भी हैं। इस बार इतनी बरसात नहीं हुई कि एसे प्रल्यंकारी हालात उत्पन होते। इसके अलावा 2013 में ठीक दस साल पहले उत्तराखंड में आई बाढ़ के दौरान कुछ पर्यवेक्षपों का आकलन था कि उत्तराखंड के पहाड़ों की मजबूती कम है जबकि हिमाचल के पहाड़ों की मजबूती कुदरतन बहुत ज्यादा है क्योंकि हिमाचल के पहाड़ सख्त श्रेणी वाले हैं। उत्तराखंड में हुई 2013 में हुई तबाही का अंदाजा इस बात से ही लगाया जा सकता है कि 53,480 वर्ग किलोमीटर में फैले इस प्रदेश की 86 फीसदी भूमि पहाड़ी क्षेत्र की है जिसकी गणणा बनती है 45,993 वर्ग किलोमीटर। कुदरत के कहर से प्रभावित उत्तराखंड की पहाड़ी भूमि का 40,000 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र आपदा ग्रस्त हो गया था। इससे साफ जाहिर है कि लगभग 87 फीसदी उत्तराखंड का पहाड़ी इलाका 2013 में तबाह हो गया था।

फिर हिमाचल के चहुं कोनों में हाल ही में हुई तबाही की जो तस्वीरें सामने आ रही हैं उसे देख कर लगता है कि पानी के साथ जैसे जंगलों के जंगल बहे चले आ रहे हैं। खास तौर पर काटे गए वृक्षों के जमींदोज हुए जड़ों वाले बड़े बड़े हिस्से सैंज के बाजार में प्रलय का खेल खेल गए, भुंतर के जुगराफिये से लेकर उसकी सारी सूरत ही उलट पलट कर दी। पड़ोंह में हुई तबाही पर रोते रोते पंडोह वालों के तो आंसूं भी सूख गए। सोलन जैसे सेफ पहाड़ी शहर का आलम शामती में देखा जा सकता है जहां एक बहुत बड़े नव निर्मित आवासीय क्षेत्र के ऊपरी हिस्से में बना घर इस हालात के दबाव में ढहा तो पूरा आवासीय इलाका ही बे-आबाद हो गया। उस कालोनी के कई एसे घरों वाले थे जिन्होंने अभी शिफ्ट तो क्या करना था, नया घर अभी खाली सूरत में भी अच्छी तरह से नहीं देखा था।। अब उस कालोनी में कौन जान हथेली पर लेकर रहेगा, कहा नहीं जा सकता। सबसे बड़ी बात कई सौ साल पुराना मंडी का मंदिर जो नदी किनारे पूरी शान से खड़ा रहा जबकि उसके पिछवाड़े इलाके पर भी ब्यास की बहुतेरी मार पड़ी। इसी प्रकार के दृष्य 2013 की उत्तराखंड में हुई तबाही के थे। तब हमने जीवनदायिनी गंगा जी के आंचल से निकल रही लाशों का मंजर देखा। भोलेनाथ के कैदारनाथ  (मंदिर) की रक्षा में उतरे बड़े पत्थरों का कमाल देखा जिसने मंदिर की तरफ जा रहे पानी के सैलाब को मंदिर के आस पास बसे बसेरों की तरफ मोड़ कर  आसपास बसे इलाके को नेस्तोनाबूद कर दिया। कहते हैं कि रुद्र प्रयाग में शिव ने भैंसे पर बैठ कर रुद्र रुप दिखा इस क्षेत्र को डुबो दिया था। दो बड़ी तबाहियों में एक ही प्रकार का चमत्कार देख कर आज मेरे भीतर से फिर वो सवाल अपना फन उठा रहा है। कौन है भगवान! क्या है भगवान! अर्थ क्या है भगवान शब्द का! बहुत साल पहले एक विद्वान ने बताया था इस शब्द का अर्थ। भ से भूमि, ग से गगन, व से वायू, आ से अग्नि और न से नीर। 

पर ये तो वो पांच तत्व हैं जिन्हें विज्ञान भी प्रमाणित करता है कि इन पांच तत्वों से ही मानव का शरीर बना हुआ है। तो क्या इसका अर्थ वो ही है जो साधारण बुद्धि से समझ में आ रहा है! भगवान का अर्थ पांच तत्वों से बना मनुष्य! यानि मनुष्य में भगवान है! या मनुष्य ही भगवान है! यदि मनुष्य स्वमं ही भगवान है तो क्या खोजने जाता है पहाड़ों की कंदराओं में! क्यों जाता है! इसे कौन जाने को उकसाता है! क्या भगवान स्वमं! जो खुद उसके भीतर विराजमान है! गुरु नानक साहिब ने पहली बार इस शक्ति को पहचाना था। कहा था, ईश्वर निराकार है। यानि निर-आकार। जिसका कोई आकार नहीं। जैसे बिजली है। सूरत कैसी है बिजली की! किसी ने देखा है कभी बिजली को! हां महसूस होती है। पावर कट लग जाए गर्मी में तो तुरत पता चल जाता है कि लो जी गई बिजली। गर्मी पसीने से तर-ब-तर किए होती है। तभी पंखा चलने लगता है। पसीने से लथपथ शरीर पर पंखे की हवा का पड़ता झोंका जता देता है। लो जी आ गई बिजली। हो सकता है किसी को मेरा कहना अच्छा न लगे। मैने धर्म ग्रंथों, विशेष तौर पर गुरुबाणी व गीता से ईश्वर की तलाश की कोशिश की! जितना मेरी तुच्छ बुद्धि के समझ में आया उससे लगता है कि मैने ईश्वर को पहचान लिया है। आप जान लें कि मेरे हिसाब से कौन है ईश्वर! प्रकृति। कुदरत। वनस्पति। मिट्टी। जल। वायू। इन सब को संचालन करने वाली शक्ति जो दिखती नहीं। महसूस होती है। कभी तपती गर्मी में किसी छायादार पेड़ के नीचे रुकिए। लगेगा कि गर्मी के आवरण से किसी दूसरी दुनिया में प्रवेश मिल गया। बेहद राहत मिली है। ठंडा जल ग्रहण करें। भीतर से आवाज निकलेगी। हे ईश्वर! ईश्वर ने, कुदरत ने। वो हर चीज पहले से ही बना रखी है जिनको आज नए अविष्कार कहा जाता है। रिसर्च। यानि रि-सर्च। हो चुकी सर्च की दोबारा पड़ताल। इन्सान ने हवाई जहाज बनाया। सौ-दो सौ साल पहले! ईश्वर ने सदियों पहले बना दिया था। पंछी। पंछी की रि-सर्च है हवाई जहाज। इन्सान ने पनडुबी बनाई। सौ-दो सौ साल पहले। ईश्वर ने सदियों पहले बना दी थी। मछली। क्या एक मुट्ठी भर मिट्टी बना सका है कोई आज तक! एक मुट्ठी भर मिट्टी! जहां भी जाओ, मिट्टी के ढ़ेर हैं। किसने बनाई ये मिट्टी! ईश्वर ने। ब्रह्मांड में जितने भी पेड़ पौधे, घास फूस, फल-फूल का यहां तक कि एक तिनका भी। सबके पीछे कोई तर्क है। सबका कोई न कोई उपयोग है। ईश्वर हर समय किसी न किसी रूप में हमारे सामने रहता है। हम उसके असली रूप को तो तबाह करने पर तुले हुए हैं और उसे ढूंढने जाते है मंदिरों में! गिरजों में! गुरुद्वारों में। हम मिट्टी में जहर मिला रहे हैं। वनस्पति को जहरीला कर रहे हैं। पानी को दूषित कर रहे हैं। एक पेड़ कितने वर्ष में जवान होता है, उसमें कुदरत कितनी मिट्टी कितना पानी इस्तेमाल करती है। वो कितनी आक्सीजन देता है। ये जाने बिना विकास के नाम पर एक ही दिन में हजारों पेड़ काट रहे हैं। उनकी जड़ों को भी खोद खोद कर निकाल रहे हैं कि कहीं ये ससुरा फिर से उगने की गुस्ताखी न कर सके।

माफ करें त्रासदी बहुत ज्यादा बड़ी है। बहुत सी जानें जा चुकी हैं। पर ये आंकड़े ये संदेश नहीं देते कि ईश्वर, कुदरत चाहती है कि मत आएं मेरे घर। मैदान की गंदगी, प्लास्टिक की बोतलें, पॉलीथीन का कचरा मुझसे दूर रखो। मेरी आस्था के चलते आने वालों को ठगने वाले पापी मेरी धरती से दूर रहें। मेरी आस्था के नाम पर पिकनिक मनाने वाले कोई और मनोरंजक स्थान चुन लें। मुझे पाना है तो अपने घर दो पौधे लगा कर उनकी सेवा करें। पानी दें। उन पौधों को छू कर आने वाली हवा के माध्यम से मैं आपको आपके घर आ कर मिल जाया करूंगा।

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