यहां रावण का अनोखा मंदिर; सिर्फ दशहरे के दिन खुलते कपाट, दशानन के सामने हाथ जोड़े खड़े रहते लोग, होती पूजा-आरती, जलते दीये

Dashanan Mandir Kanpur Open Only on The Day of Dussehra Vijaya Dashami
Dashanan Mandir Kanpur: विजयादशमी के पर्व पर जहां एक तरफ देश में अधर्म, अहंकार और बुराई के रूप में रावण के पुतले दहन किए जाते हैं तो वहीं दूसरी तरफ उत्तर प्रदेश में रावण का एक ऐसा अनोखा मंदिर है, जहां लंकेश की मूर्ती स्थापित है और वहां फूल-मालाओं के साथ पूजा-अर्चना व आरती होती है। धूप और दीये जलते हैं। साथ ही दशानन के सामने लोग हाथ जोड़े खड़े नजर आते हैं और लंकेश से आशीर्वाद लेते हैं। देशभर में लंकापति रावण के इस मंदिर की खूब चर्चा रहती है।
कानपुर के शिवाला में स्थित है दशानन मंदिर
रावण का ये अनोखा मंदिर कानपुर शहर के शिवाला इलाके में स्थित है। इस मंदिर का नाम है दशानन मंदिर। यह मंदिर 155 साल से ज्यादा पुराना बताया जाता है। कहा जाता है कि इस मंदिर का निर्माण सन 1868 में महाराज गुरु प्रसाद शुक्ल ने कराया था। मंदिर बनवाने के पीछे की कहानी यह है कि रावण के ज्ञान और पराक्रम को पूजनीय माना गया है। इसलिए इस मंदिर में रावण की विद्वता और बुद्धि की पूजा की जाती है, न कि उसके अधर्म और अहंकार की। अधर्म और अहंकार के रूप में तो रावण का दहन ही होता है।
सिर्फ दशहरे के दिन खुलते दशानन मंदिर के कपाट
रावण का यह अनोखा मंदिर साल में सिर्फ एक बार दशहरे के दिन ही खुलता है। बाकी दिनों मंदिर बंद रहता है। दशहरे के दिन सूर्य की पहली किरण के साथ सुबह 6 बजे के करीब मंदिर की साफ-सफाई के बाद दशानन की विशेष आरती का आयोजन होता है, जिसमें बड़ी संख्या में लोग शामिल होते हैं। मंदिर शाम 8 बजे तक खुला रहता है। इस दौरान लगातार लोग फूल-माला और प्रसाद चढ़ाते रहते हैं और यही नहीं लोग लंकेश से मन्नत भी मांगते हैं। यहां रावण की प्रतिमा पर तरोई के फूल और तेल के दीपक चढ़ाए जाने की मान्यता है।
दशानन मंदिर के पुजारी और पूजा करने वाले स्थानीय निवासियों का मानना है कि रावण एक महान विद्वान पंडित और सभी दिव्य शक्तियों से संपन्न था। उसकी पूजा उसके इन्हीं गुणों को मानकर की जाती है। यहां रावण को ज्ञान और शक्ति का प्रतीक मानकर पूजा जाता है। रावण इतना बड़ा विद्वान और ज्ञानी था कि धरती पर आज तक कोई उसके जैसा विद्वान पंडित धरती पर नहीं हुआ। रावण के ज्ञान के कारण ही अंत समय में स्वयं भगवान राम ने अपने भाई लक्ष्मण को रावण से ज्ञान लेने के लिए उसके पास भेजा था।