Shah Sirsa rally

Editorial: शाह की सिरसा रैली से नए राजनीतिक विमर्श की शुरुआत

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Shah Sirsa rally

Shah Sirsa rally हरियाणा के सिरसा में केंद्रीय गृह मंत्री एवं वरिष्ठ भाजपा नेता अमित शाह ने रैली के जरिये कई संदेश देने की कोशिश की है। उन्होंने जहां मुख्यमंत्री मनोहर लाल की तारीफ के पुल बांधे वहीं गठबंधन को लेकर उठने वाले सवालों का जवाब देने का प्रयास किया। राज्य की सियासत की हवा कब किस दिशा में बहने लग जाए, कोई नहीं जानता लेकिन शाह जैसे रणनीतिकार अगर प्रदेश में सभी 10 सीटें फिर से भाजपा के लिए मांग रहे हैं, तो इसके गहरे अर्थ हैं। भाजपा-जजपा गठबंधन के बीच आजकल बयानों की कश्मकश जारी है। इसे दबाव की राजनीति माना जा रहा है। बहुत बार यह भी लग रहा है कि अब गठबंधन केवल औपचारिकता है, हालांकि फिर वरिष्ठ नेताओं एवं खुद मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री की ओर से गठबंधन को कायम रखने के बयान आते हैं।

गौरतलब है कि उचाना हलके को लेकर उपमुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला कह चुके हैं कि वे इसी हलके से चुनाव लड़ेंगे, हालांकि यह हलका एक समय भाजपा नेता बीरेंद्र सिंह का होता था, बाद में दुष्यंत चौटाला ने इस सीट पर भाजपा उम्मीदवार को हराया। उपमुख्यमंत्री की ओर से अपने आप में हलके से उम्मीदवारी घोषित करना भी भाजपा को बेचैन कर रहा है। अब जजपा के वरिष्ठ नेता दिग्विजय चौटाला का बयान आया है कि महेंद्रगढ़-भिवानी लोकसभा क्षेत्र से जजपा सुप्रीमो अजय चौटाला चुनाव लड़ेंगे। प्रश्न यह है कि भाजपा एवं जजपा की ओर से एक तरफ गठबंधन कायम रखने और आगे भी मिलकर चुनाव लडऩे की गुंजाइश जताई जा रही है, लेकिन दूसरी तरफ इस तरह के बयान भी सामने आ रहे हैं।

हरियाणा में अगले वर्ष लोकसभा एवं विधानसभा चुनाव होने हैं। इन चुनावों की तैयारी अभी से शुरू हो चुकी है और केंद्रीय गृहमंत्री शाह की सिरसा रैली से यह साबित हो गया है कि भाजपा पूरी तरह से खुद को चुनाव में झोंक चुकी है। मुख्यमंत्री मनोहर लाल आजकल जनता से संवाद कार्यक्रम का संचालन कर रहे हैं, इस दौरान वे हलके के लोगों की समस्याओं का मौके पर ही निराकरण कर रहे हैं। इसके अलावा मंत्रियों एवं विधायकों को भी जनता से मुखातिब होने की जिम्मेदारी सौंपी गई है। भाजपा नेताओं ने महाजनसंपर्क अभियान भी शुरू कर दिया है। इस पूरी कवायद के मद्देनजर विपक्ष की ओर से दावा किया जा रहा है कि चुनाव जल्दी कराए जा सकते हैं।

हालांकि यह सब बातें शिगूफा हो सकती हैं, लेकिन फिर भी सत्ता पक्ष की तैयारियों को देखकर विपक्ष ने भी अपने लावलश्कर को एकजुट करना शुरू कर दिया है। ऐसे में शाह की चुनावी रैली ने प्रदेश में राजनीतिक हवाओं को और तेज कर दिया है। इसे लोकसभा और फिर विधानसभा चुनावों का बिगुल फूंकना कहा जाए तो गलत नहीं होना चाहिए।

प्रदेश में भाजपा के लिए सबसे बड़ी चुनौती कांग्रेस है और अपनी जनसभा में शाह ने कांग्रेस नेतृत्व पर जिस प्रकार से बाण चलाए हैं, वह बताता है कि आगामी चुनाव में भाजपा की रणनीति इन्हीं मुद्दों को लेकर चुनाव लडऩे की रहेगी। शाह ने भूपेंद्र सिंह हुड्डा के नेतृत्व वाली पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार को थ्री डी यानी दरबारी, दामाद और डीलर का शासन करार दिया है। वहीं इस शासन को खत्म करने का श्रेय मुख्यमंत्री मनोहर लाल को दिया।

शाह ने इस दौरान उपमुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला के परदादा ताऊ देवीलाल के नाम का जिक्र कर जजपा से भाजपा के रिश्तों को न भुलाने का संदेश दिया। उन्होंने लोगों से उनके नाम पर समर्थन मांगा। बावजूद इसके भाजपा की ओर से अकेले चुनाव लडऩे की पहेली अब यक्ष प्रश्न बन चुकी है। दरअसल, भाजपा प्रदेश प्रभारी की ओर से निर्दलीय विधायकों के साथ बैठक और अपने सांसदों, विधायकों से गठबंधन पर चुनाव लडऩे या अकेले लडऩे को लेकर राय मांगने के बाद यह कयास लगाए जा रहे हैं पार्टी का शीर्ष नेतृत्व इसकी तैयारियों में जुटा है। एक तरफ वह मन टटोल रहा है वहीं दूसरी तरफ अभी से आधार तैयार कर रहा है।

गौरतलब है कि शाह के ऐसे बयानों पर जजपा की ओर से कहा जा रहा है कि यह उनकी निजी राय हो सकती है। पार्टी ने अपने तौर पर लोकसभा की सभी 10 और विधानसभा की 90 सीटों पर तैयारी शुरू की हुई है। जैसी परिस्थितियां बनेंगी, उनके मुताबिक चला जाएगा। भाजपा और जजपा को अपना-अपना राजनीतिक भविष्य देखना है, आगामी समय में यह स्पष्ट हो जाएगा कि आखिर दोनों पार्टियों को साथ लड़ना है या फिर अलग होकर। राजनीति में चुनावी मैदान में आमने-सामने भिडऩे वाले दल सरकार बनाने के लिए फिर एकजुट हो जाते हैं। जाहिर है, राजनीति और हवाओं की दिशा का अंदाजा लगाना मुश्किल है। शाह की रैली ने प्रदेश में नए राजनीतिक विमर्श को शुरू किया है, जिसकी गूंज भी रहेगी। 

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