One hundred and fifty years old dahala is becoming the attraction of Surajkund fair

डेढ़ सौ साल पुराना दहला बन रहा सूरजकुंड मेले का आकर्षण, भावुक हो बुजुर्ग याद कर रहे पुराना जमाना, हरियाणा के 52 लोक आभूषणों में से लगभग 29 आभूषणों को फिर से पूर्ण रूप से सहेजा

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One hundred and fifty years old dahala is becoming the attraction of Surajkund fair, elders are gett

One hundred and fifty years old dahala is becoming the attraction of Surajkund fair, elders are getting emotional remembering the old times : चंडीगढ़। रंग बिरंगी गोटेदार चुन्नियाँ, 52 गज का दामण और उस पर कुर्ता हरियाणा की पहचान है। अंतर्राष्ट्रीय सूरजकुंड शिल्प मेले में हरियाणा की वैभवशाली कला, संस्कृति और प्राचीन विरासत पग-पग पर दर्शकों के कौतुहल का कारण बन रही है। कही रंग बिरंगी पोशाक में लोक संगीत पर थिरकते कलाकार  आगंतुकों को भी उसमे हिस्सा लेने के लिए प्रेरित करते नजऱ आते है तो कही ग्रामीण परिवेश का जीवंत चित्रण भारत की विविधता में एकता के दर्शन करवाता दिखता है। हरियाणा की प्राचीन परंपरा व धरोहर से युवाओं को जोडऩे के लिए विरासत प्रदर्शनी ‘आपणा घर हरियाणा’ एक बेहतरीन पहल है। इस विरासत प्रदर्शनी से जुडी सोच लोगो को हरियाणवी संस्कृति से रूबरू करवाने की है, जो आज के इस आधुनिक युग में कही गुम होती नजऱ आती है।

हरियाणा का पारम्परिक पहनावा दामण, कुर्ता और गोटेदार चुन्नी इस प्रदर्शनी में न केवल देखा जा सकता है, बल्कि खऱीदा भी जा सकता है। लोग बड़े चाव से इसे खरीद रहे है। यहाँ यह जानना रोचक है कि केवल देश ही नहीं विदेशी भी इस पहनावे को खऱीदने में बढ़ चढ़ कर हिस्सा ले रहे है। विरासत प्रदर्शनी में हिस्सा ले रही अंजू दहिया का कहना है कि हरियाणा की महिलाओं द्वारा पहना जाने वाला दामन कऱीब 7 से 8 किलो वजन का होता है। प्राचीन काल से ही न केवल हरियाणा की  महिलाओं द्वारा पहना जाने वाला पहनावा वजनदार रहा है। बल्कि हरियाणवी संस्कृति से जुड़े पुराने लोक आभूषण भी उसी तरह से वजनदार और खूबसूरत रहे है।  हरियाणा की अमूल्य विरासत को बचाने व इसे नई पीढी तक पहुंचाने के लिए अंजू दहिया एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है। वह कहती है कि यूथ जुड़ेगा तभी दामन बचेगा। इसी सोच के साथ इस मुहीम को चलाया जा रहा है।

प्राचीन काल में हरियाणा में 52 लोक आभूषण प्रमुख तौर पर प्रचलित थे। जिसमे से इस पहल के माध्यम से हमने लगभग 29 लोक आभूषणों को पूर्ण रूप से फिर से सहेज लिया है। इस प्रदर्शनी के माध्यम से जन मानस तक इस धरोहर को पहुँचाना ही एक मात्र मकसद है।

अंजू दहिया का कहना है कि यहाँ हाथ के काम से बने परिधान रखे गये है। जो कि मेले का मुख्य आकर्षण है क्योंकि मशीन से बने कपड़े आज हर जगह उपलब्ध है, जिन्हे आप आसानी से खरीद सकते है। हाथ से और दिल से बनी चीज़ अनमोल होती है। इसी बात को ध्यान में रखते हुए हाथ से बने परिधान ही इस प्रदर्शनी में  रखे गए है।

उनका कहना है कि विरासत प्रदर्शनी के जरिये गावों की हस्त कला व पुरानी धरोहर को बचाने का प्रयास किया जा रहा है। यहाँ पुराने जमाने से चला आ रहा  पीढ़ा, जो बैठने के लिए काम में लिया जाता था।  पीढ़ा से बड़ा खटोला, खटोला से बड़ी खाट, खाट से बड़ा पलंग, व पलंग से बड़ा दहला सभी यहाँ रखे गए है। प्रदर्शनी में रखा दहला करीब डेढ सौ साल पुराना है। प्राचीन समय में दहला गांव की चौपाल में रखा जाता था। जिस पर एक समय पर 8 से 10 व्यक्ति बैठ सकते थे।  दहला को देखकर आ रहे आगंतुक रोमांचित ही नहीं आश्चर्यचकित भी है क्योंकि यह अपने आप में अनूठा है।

अंजू दहिया ने वहाँ प्रदर्शित वस्तुओं के बारे में विस्तार से बताया कि पुराने समय में इस्तेमाल होने वाला  बोइया हस्तकला का ऐसा नमूना है जो पहले महिलाये घरों में रह कर पुराने कागज़ को कूट कर उसपर मुल्तानी मिट्टी के लेप से तैयार करती थी। बोइया का इस्तेमाल शादी ब्याह में बारात के खाना परोसने के लिए किया जाता था। वही खेतों में हल के पीछे बीज बोने के लिए बांधा जाने वाला ‘औरना’ भी रखा गया है। वहाँ लकड़ी का पुराना बक्सा, कुँए से पानी निकलने वाला ढोल, कांटे, पशुओं के गले में बांधने वाली घंटिया जो पुराने जमाने में गांव में सुबह और शाम हर व्यक्ति के कान में सुनाई दे जाती थी।न्योल जो पशुओं के पैरों में बांधी जाती थी जो लॉक सिस्टम का कार्य करती थी। दूध बिलौने की रई, आटा पीसने की चक्की, जो उस समय महिलाओं की दिनचर्या का महत्वपूर्ण हिस्सा था। क्यूंकि उस समय घरों में ताजा पिसा आटा ही खाया जाता था। वही मुड्ढे, टाँगली, जेली, काठी,नाप तौल के बाट, मिट्टी की सुराही, चरखा, हुक्का आदि शामिल है , जो आज कही न कही हम आधुनिकता के दौर में भूल गए है। इस प्रदर्शनी के जरिये लोगो को इन सभी चीजों से रूबरू करवाकर  अपनी जड़ों से जोडऩे  की यह एक बेहतरीन पहल है।

 

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