1947 के बंटवारे की कहानी, जिसने झेला उनकी जुबानी और कुछ यादें भारत-पाकिस्तान के लिए, देखे इस खास ख़बर में 

1947 के बंटवारे की कहानी, जिसने झेला उनकी जुबानी और कुछ यादें भारत-पाकिस्तान के लिए, देखे इस खास ख़बर में 

1947 Partition of India and Pakistan

The story of the partition of 1947, who suffered his words and some memories for India-Pakistan, see

आज हम अपना 75th Independence Day मना रहे है पर मौजूदा पीढ़ी को यह भी नहीं पता कि आजादी लेते समय भारत को दो मूलखों में बांटा गया था। जिसमें 10 लाख से अधिक लोग मरे गए थे। इतना बड़ा खुनी कतलेआम शायद ही कहीं और हुआ होगा। इस कत्लेआम में बड़ी गिनती में लोग बेघर हो गए। बात 15 अगस्त 1947 की है जब यह बंटवारा हुआ तो एक नया मुस्लिम देश पाकिस्तान बना। तब लाहौर, गुजरांवाला, लॉयलपुर में रह रहे हिन्दू ,पंजाबी और सिख लोग जो बड़ी संख्या में वहां से उजड़ कर बैलगाड़ियों में मीलों लंबे काफिले बना कर मुसलमानो का मुकाबला करते अमृतसर और फिरोजपुर पहुंचे। उस वक़्त जो हिन्दू, सिख और पंजाबी लोगो ने सहा वो वही जानते है। कुछ की आंखे तो मूंदी रह गयी लेकिन आज भी कुछ उस दर्द की यादें अपनी आंखो में समेटे ज़िंदा है। तो आइए उनसे सुनते है 1947 के बंटावारे का दर्द और भारत - पाकिस्तान की मोहब्बत की कुछ यादें । 

एक कहानी कृष्णा रानी की, जिसमे लाहौर का ज़िकर कुछ ऐसा किया है 

शहर फ़िरोज़पुर की रहने वाली कृष्णा रानी अपनी याद का पन्ना कुछ इस तरह से ब्यान किया। वह बताते है कि वह काफी छोटे थे जब लाहौर गए था, उन्होंने वह बहुत अच्छा वक़्त बिताया है। जैसा पंजाब है वैसा लाहौर है जो मिट्टी वहां है वही मिट्टी पंजाब में है। लाहौर और पंजाब के लोगो में कोई फर्क नहीं था जब तक बंटवारा नहीं हुआ था पाकिस्तान के लोग और भारत के लोग बहुत अच्छे से रहते थे। एक दूसरे से दुःख - सुख बांटना और प्यार से रहना मानो जैसे एक देश था। फिर जब कुछ कट्टड़पंथी लोगो के वजह से नफरते पैदा हुई और दो मुल्को में सरहदों की लकीरें खींचे तो वह प्यार नफरत में बदल गया। कृष्णा रानी। जी बताते है कि कई बार तो उग्रवादी उनके दरवाजे पीटते थे पर वे लोग दरवाजा नहीं खोलते थे। लाहौर में बिताया वह पल उन्हें आज भी याद है। उनके भी घर को जला दिया गया था पर वह बहुत मुश्किल से जान बचाकर लाहौर से निकले थे। आज कृष्णा रानी जी बूढी हो चुकी है पर आज भी लाहौर के उस घर को याद करती है। 

1947 के दौर से गुज़री कमलेश कुमारी की एक दर्दनाक कहानी 

कमलेश कुमारी के खुद के माता जी उस बंटवारे के समय छोटी उम्र के हुआ करते थे। वो बताते है कि जब भारत पाकिस्तान बंटवारे का एलान हुआ तब वो लाहौर के पास के किसी गांव में रहते थे। जब सरकार द्वारा हिंदुओ, सिखो पाकिस्तान छोड़ने का एलान हुआ तो मुस्लिम कट्टड़पंथी लोगो ने हुन्दुओं पंजाबियों व् सिखों पर हमले शुरू कर दिए। रात के सुनसान रास्ते पर मक्की के खेतों के पार गांव से आग की लपटें उठ रही थी और लोगों के चिलाने की आवाजें साफ़ सुनाई पड़ रही थी। वह मंज़र बहुत भ्यानक था। आखिर में कमलेश कुमारी ने बताया कि उनके माता जी घर छूट गया पाकिस्तान में पर वह मरते वक़्त भी अपने पाकिस्तान में घर, परिवार के सदस्यो को याद करती रही। 

एक कहानी अली काज़मी और कासिम फरीद की, जिन्होंने भारत की एक मीठी से याद दिल में बसाकर लाहौर ले गए 

अपनी भारत की याद में उन्होंने बताया की 2007 में जब इन् दोनों बंगलोरे की एक यूनिवर्सिटी से इंवीटेशन आया था उस वक़्त अली और कासिम फरीद दोनों ने बताया की लाहौर युनिवर्सिटी के स्टूडेंट थे और वह थेटर का artist भी थे। अली ने बताया की उनके टीम को भारत परफॉर्म करने लिए बुलाया गया था लाहौर से उन्होंने वाघा बॉर्डर क्रॉस किया और अमृतसर गए फिर वह से दिल्ली और अगर के लिए बस से लेकर ट्रेन का लम्बा सफर करके बंगलौर पहुंचे। दोनों ने बताया की उनके पास शनाख्ती कार्ड भी नई था पर उनको वीसे से उन्हें अग्गे जाने की इज़ाजत मिल गयी थी। उन्होंने Taj Mehal देखा, जिसके बाद वह दोनों काफी खुश हुए और इमोशनल भी। वह बताते है कि भारत के लोगो ने उन्हें बहुत प्यार दिए है चाहे सरहदे बंट गयी पर लोग बांटने वाली सरकार बांट न सकी।

भारत के लिए एक प्यारी सी याद हामद नवाज़ की ज़ुबान से 

फ़ारुका की रहने वाली हामद नवाज़ बताती है की उनका हमेशा सपना रहा है की जवाहर लाल यूनिवर्सिटी (JNU) देखनी है और वह पढ़ने का ख्याल भी उनका रहा है। जैसे पाकिस्तान में पुराना लाहौर है नया लाहौर है वैसे ही भारत में नई दिल्ली है पुरानी दिल्ली है। भारत में लाहौरी गेट है। वैसे दिल्ली गेट भी है। हामद नवाज़ ने बताया की उन्हें उम्मीद है की वह भारत दर्शन में इन् जगहे पर जरूर जाएगी।  

भारत में रहने वाले इकबाल कैसर की एक याद 

इकबाल कैंसर भारत में रहते है। उन्होंने बताया कि उनके दादा जी 1947 में जब भारत आये तब उन्होंने तब कई दुःख-दर्द सहा। वह बताते है की दोनों मुल्को में लकीरें जरूर खिंच गयी पर प्यार बरकार है। इक़बाल ने बताया कि दादा जी अपने तनहाई के समय में पाकिस्तान के गांव को याद करते थे। उन्होंने कहना की मुझे कसूर जाना है एक बार अपना घर देखना है अपने मिट्टी के बरतन लेकर आने है वापिस। इकबाल ने बताया कि ये पाकिस्तान की ज़मीन की कशिश थी जो उनके दादा जी को खींचती थी। वह भारत और पाकिस्तान के लोगो से बेहद मोहब्बत रखते थे। आज उनके दादा जी नहीं है पर इकबाल अपने दादा जी की आखरी इच्छा के लिए एक बार पाकिस्तान के कसूर शहर में जाना चाहते है। 

भारत और पाकिस्तान को बने 75 साल हो गये है। 1947 के उस partition का migration दुनिया की सबसे बड़ी माईग्रेशन रहा है। भारत और पाकिस्तान के लोगो में प्यार आज भी रहा है और ये बरकार रहे हमेशा ऐसा अर्थप्रकाश अखबार की टीम कामना करती है और ऐसी कई दिलचसप किस्से लेकर आपके साथ बने रहेंगे।