Utility of Confidence Motion in Vis

विस में विश्वास प्रस्ताव की उपयोगिता

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Utility of Confidence Motion in Vis

Utility of Confidence Motion in Vis : पंजाब में आप सरकार की ओर से विधानसभा सत्र बुलाना शक्ति प्रदर्शन करने के अलावा और कुछ प्रयोजन साबित नहीं हुआ है। सरकार की ओर से पराली, जीएसटी और बिजली के मुद्दों को लेकर इस विशेष सत्र को बुलाया गया है, लेकिन इस दौरान आम आदमी पार्टी की सरकार ने केवल मात्र इस बात को रेखांकित करना ही जरूरी समझा कि किस प्रकार उनकी सरकार को गिराने के लिए भाजपा कोई ऑपरेशन चला रही है और कांग्रेस एवं अन्य विपक्षी दल इस कार्य में भाजपा की मदद कर रहे हैं। यह ताज्जुब करने वाली बात है कि 92 विधायकों के प्रचंड बहुमत के बावजूद आप सरकार इतनी भयभीत है कि भाजपा उसे तोडऩे के लिए कथित रूप से साजिश रच रही है। विस सत्र में शामिल होने की बजाय भाजपा ने जहां समानांतर विधानसभा लगाकर अपनी मंशा को जाहिर कर दिया वहीं कांग्रेस विधायकों को सदन से मार्शलों की मदद से निकालने के बाद विस के बाहर मॉक सदन लगाया। अब प्रश्न यह है कि अगर विधानसभा सत्र बुलाया जाता है तो उसमें विपक्ष की भूमिका क्योंकर तय नहीं है। विधानसभा किसी एक दल के लिए तो नहीं है, अगर पंजाब की जनता ने सभी सीटों पर आप को ही चुनकर भेजा होता तो बेशक, विपक्ष का स्थान तब सदन के बाहर ही होता, लेकिन जब भाजपा के दो विधायक विस में न होकर पार्टी की समानांतर विधानसभा में बैठते हैं, वहीं कांग्रेस के विधायकों को जबरन बाहर कर दिया जाता है, तब इस विशेष सत्र की उपयोगिता पर सवाल उठाए जाने लाजमी हैं।

विधानसभा की एक दिन की कार्यवाही पर ही लाखों रुपये व्यय होते हैं। पंजाब पहले ही कर्जदार राज्य है और उसकी आर्थिक स्थिति डांवाडोल है। ऐसे में एक अनावश्यक सत्र बुलाकर सरकार ने आखिर क्या हासिल किया है। पहले इस सत्र को एकदिवसीय बताया गया था लेकिन बाद में इसे तीन दिनी कर दिया गया। इससे पहले राज्यपाल के साथ मुख्यमंत्री भगवंत मान का टकराव हो चुका है, जब राज्यपाल ने एकदिवसीय विशेष सत्र जिसे विश्वास मत हासिल करने के लिए बुलाया जाना था, को मंजूरी नहीं दी। इसके बाद सरकार ने भी अपनी जिद पर रहते हुए विश्वास मत संबंधी जानकारी राज्यपाल से छिपाते हुए पराली, जीएसटी आदि के मुद्दों को ही सामने रखा और उनकी मंजूरी हासिल कर ली। क्या सरकार ने संवैधानिक पद पर आसीन राज्यपाल को गुमराह करके संविधान को नुकसान नहीं पहुंचाया है। अगर सरकार के पास सच में ऐसे मुद्दे होते, जिन पर सत्ता और विपक्ष दोनों की रजामंदी होती और उन पर चर्चा करना जरूरी होता तो क्या यह ज्यादा वाजिब नहीं होता। इस तरह की कार्यप्रणाली आप सरकार की अनुभवहीनता को भी जाहिर करती है। क्योंकि राजनीतिक परिपक्वता में एक सरकार का मुखिया विश्वस्त रहता कि किसी भी हालत में विपक्ष के पास इसका दम नहीं है कि वह उसकी सरकार को हिला सके। हालांकि आप सरकार बहुत ज्यादा आशंकित है।

पंजाब में आज अनेक ऐसे मुद्दे हैं, जिन पर पक्ष-विपक्ष को साथ बैठकर चर्चा करने और उनके समाधान की जरूरत है। इनमें पराली को जलाने का मुद्दा ही एकमात्र नहीं है, प्रदेश में नशाखोरी, अपराध, बेरोजगारी, शिक्षा का स्तर, प्राकृतिक संसाधनों का क्षरण, उद्योग, प्रदूषण, सडक़-रोड की बदहालत, राज्य पर कर्ज आदि तमाम ऐसे मुद्दे हैं, जोकि समाधान की मांग कर रहे हैं। लेकिन सरकार केवल अपने विश्वास मत की परवाह कर रही है। आप सरकार को इस पर भी ध्यान देना चाहिए कि उसकी ओर से शुरू की गई भ्रष्टाचार विरोधी मुहिम आजकल सक्रिय नहीं है। ऐसी भी रिपोर्ट है, जब भ्रष्टाचार रोकने के लिए सरकार की ओर से जारी वॉट्सएप नंबर पर 3.28 लाख लोगों ने शिकायतें दर्ज कराई, अब बेशक इनमें से ज्यादातर फर्जी भी हो सकती हैं। लेकिन सरकार की ओर से महज 187 शिकायतों को ही सही पाना और उन पर कार्रवाई करना हास्यास्पद लगता है। जनता दुख सहने की आदी हो चुकी होती है, रिश्वत देना उसके लिए सामान्य बात हो जाती है, क्योंकि कोई क्यों लगे किसी लाइन में, जबकि कुछ रुपये देकर वह बगैर लाइन के ही अपने काम को निकलवा सकता है। हालांकि अगर सरकार के सिस्टम को वह पुख्ता और त्वरित पाता है तो एक मामूली व्यक्ति भी व्हिसल ब्लोअर बन सकता है। अब अगर विपक्ष यह आरोप लगा रहा है कि भ्रष्टाचार के खिलाफ शिकायतें लगातार कम हो गई हैं तो यह इसी वजह से है, क्योंकि अगर कार्रवाई नहीं होगी तो फिर शिकायतकर्ता भी चुप बैठ ही जाएंगे।

पंजाब में वर्ष 2024 में होने वाले आम चुनाव के दौरान कैसी स्थिति बनेगी, इसकी तस्वीर अभी से साफ होने लगी है। यह तय है कि यह चुनाव भाजपा वर्सेज तमाम विपक्षी दलों के बीच होना है। लेकिन विपक्ष के एक-दो नेताओं की तमाम कोशिशों के बावजूद विपक्ष किसी एक मंच पर आएगा, इसकी बहुत कम संभावना है। आम आदमी पार्टी तेजी से कांग्रेस का विकल्प बनते हुए खुद को देख रही है। यही वजह है कि वह आजकल गुजरात विधानसभा चुनाव के लिए खुद को झोंक चुकी है, वहीं उन राज्यों पर भी उसकी नजर है, जहां आगामी समय में चुनाव होने हैं। पार्टी की मंशा दिल्ली तक सीमित रहने की होती तो वह पंजाब तक न आ पाती। पार्टी पंजाब में आई और कांग्रेस के मुकाबले खुद को सामने रखकर वोट मांगे। जनता ने उसे जिताया। जाहिर है, अब खुद को भाजपा के मुकाबले में बनाए रखने के लिए वह जहां लगातार खुद को संघर्षशील बता और दिखा रही है, वह इसलिए है ताकि लोगों के दिमाग में उसकी छवि बने। पंजाब विधानसभा में पूर्णबहुमत के बावजूद अगर पार्टी विश्वास प्रस्ताव ला रही है तो यह सरकारी संसाधनों का अपव्यय है, लेकिन आम आदमी पार्टी के लिए यह निवेश है।