The feeling remained the same, the idol of God looked different

जाकी रही भावना जैसी, प्रभु मूरत देखी तिन तैसी: आचार्य श्री सुबल सागर जी महाराज

The feeling remained the same, the idol of God looked different

The feeling remained the same, the idol of God looked different

The feeling remained the same, the idol of God looked different- चंडीगढ़। श्री 1008 पाश्र्वनाथ दिगम्बर जैन मंदिर कबूल नगर दिल्ली में विराजमान आचार्य श्री सुबल सागर जी महाराज के मंगल सानिध्य में 108 लोगों के द्वारा आज प्रात: कालीन श्री जी भगवान का मंगल अभिषेक वा शांतिधारा कर अपने असीम सातिशय पुण्य का उपार्जन किया। इसी बीच धर्मसभा को अमृतमय धर्मोपदेश देते हुए गुरुदेव ने कहा कि हे धर्मस्नेही भव्य आत्माओं। भावनाओं का बड़ा महत्व है भावनाएं बहुत बलबली होती है भावनाएं जितनी बलबती होती है जितनी बड़ी होती है उनका फल भी उतना ही बड़ा वा श्रेष्ठ होता है।

भावनाएं हमें जिस व्यक्ति व वस्तुओं से जोड़ती है भावनाएं जितनी अंतरंग से उत्पन्न होती है वह हमारे कार्य के लिए उतना ही संबल प्रदान करती है जो व्यक्ति जितनी निष्ठा से कार्य को संपन्न करता है वह उतनी ही महानता को प्राप्त कर लेता है अपने पुरुषार्थ का उचित फल प्राप्त कर लेता है अपने पुरुषार्थ का उचित फल प्राप्त कर लेता है। चाहे वह भावना मोक्ष मार्ग संबंधी हो या संसार संबंधी विषय की हो। या संसार संबंधी विषय की हो। संसार के क्षेत्र में व्यक्ति संसार संबंधी भावनाएं करके उस क्षेत्र में सफलता प्राप्त करता है और मोझ के क्षेत्र में व्यक्ति मोक्ष संबंधी भावनाएं करके मोक्ष को भी प्राप्त कर लेता है।

जाकी रही भावना जैसी, प्रभु मूरत देखी तिन तैसी। जिसकी जैसी भावना होती है वह उसी प्रकार से भगवान को देख पाता है जान पाता है और समझ पाता है। भगवान किसी को कुछ देते नहीं है लेकिन जो जिस रूप में उन्हें देखकर उन रूप होने की भावाना भाता है वह भावना उसी रूप उसे प्राप्त हो जाती है।

भगवान कुछ करने वाले नहीं होते है हमारे जैन आगम के अनुसार। भगवानकर्ता नहीं होते है उनके प्रति हमारी भक्ति भावना, विश्वास के साथ करते है यह श्रद्धा ही हमारी अपने भावों को इतना विशुद्ध कर लेते है कि यह विशुद्धी ही असीम सातिशय पुण्य को पैदा बढ़ती है और पुण्य के प्रभाव से ही हमारी सारी भावनाएं पूर्णता को प्राप्त होती है बस आवश्यकता है कि वह भावनाएं हमारे अंतरंग की विशुद्धि परिणामों के साथ हो।

इस ब्रह्माण्ड में कार्याण वर्गणाएं ठसाठस भरी हुई है हम जैसा सोचे, हम जैसी भावनाएं भारें वह उसी रूप कार्य को संपन्न करती है इसलिए ध्यान रखें कि हमेशा सकारात्मक सोचे। नकारात्मक रूप सोचने वाले हमेशा दुखी रहते है क्योंकि वह गलत ही सोचते है उसी का बार-बार चिंतवन करते है उसी रूप भावनाएं बनाते है अपने मन में, जिसका फल आसाता रूप, अशंति, दुख ही होता है। इसलिए अच्छी-अच्छी भावनाएं भाए निरंतर ऐ अच्छी भावनाएं ही सब कुछ अच्छी करती है। कल सुबह आचार्य संघ का विहार कबूल नगर से भजनपुरा दिल्ली की तरफ होगा। यह जानकारी संघस्थ बाल ब्र. गुंजा दीदी ने दी।