माता पार्वती के पसीने की बूंदों से ‘बेल पत्र’ की उत्पत्ति, जानें धार्मिक और आयुर्वेदिक महत्व 

Origin of 'Bel Patra' from the sweat drops of Goddess Parvati

Origin of 'Bel Patra' from the sweat drops of Goddess Parvati

Origin of 'Bel Patra' from the sweat drops of Goddess Parvati- नई दिल्ली। भोलेनाथ को प्रिय सावन का पवित्र माह शुरू होने वाला है। ऐसे में उनके पूजन का विशेष महत्व है। विश्व के नाथ का पूजन हो और बेल पत्र पूजन सामग्री में शामिल न हो, ये तो असंभव है।   

हिंदू धर्म में बेल पत्र (बिल्व पत्र) का खास महत्व है। यह 'शिवद्रुम' भी कहलाता है। भोलेनाथ को सर्वाधिक प्रिय बेल पत्र अत्यंत पवित्र माना जाता है, शिव के साथ ही शक्ति को भी यह काफी प्रिय है। बेल के पेड़ को संपन्नता और समृद्धि का प्रतीक भी माना जाता है। वहीं, इसका आयुर्वेदिक महत्व भी है।

बेल पत्र की तीन पत्तियां त्रिफलक आकार में होती हैं, जो भगवान शिव के तीन नेत्रों, त्रिशूल या त्रिदेव (ब्रह्मा, विष्णु और महेश) का प्रतीक है। इसके अलावा, यह सत्व, रज और तम गुणों को भी दिखाता है, जिनका अर्पण भक्त के अहंकार और सांसारिक बंधनों से मुक्ति का भी प्रतीक है।

इस बिल्व पत्र के महत्व का वर्णन 'बिल्वाष्टकम्' में मिलता है, ‘‘त्रिदलं त्रिगुणाकारं त्रिनेत्रं च त्रिधायुतम् त्रिजन्म पाप सहारं एक बिल्वपत्रं शिवार्पणम।’’ यह तीन गणों से युक्त होने के कारण भगवान शिव को प्रिय है। इससे पुण्य फलों में बहुत वृद्धि होती है।

स्कंद पुराण में बेल वृक्ष के उद्भव का उल्लेख मिलता है, जिसके अनुसार, माता पार्वती के पसीने की बूंदों से बेल वृक्ष की उत्पत्ति हुई थी। धार्मिक कथा के अनुसार, एक बार माता पार्वती मंदराचल पर्वत पर तपस्या कर रही थीं, तभी उनके मस्तक से पसीने की बूंदें गिरीं, जिनसे बेल का पेड़ उत्पन्न हुआ। माता पार्वती ने इसे ‘बिल्व वृक्ष’ नाम दिया और कहा कि इसके पत्तों से भोलेनाथ की पूजा करने वाले भक्त की सभी मनोकामनाएं पूरी होती है।

बेल वृक्ष की जड़ों में गिरिजा और राधा रानी, तने में महेश्वरी, शाखाओं में दक्षयायनी और फलों में कात्यायनी वास करती हैं। यही नहीं, बेल वृक्ष के कांटों में भी कई शक्तियां वास करती हैं।

अब सवाल है कि भोलेनाथ को बेल पत्र इतना प्रिय क्यों है? तो जवाब है कि बेल पत्र की शीतलता और शुद्धता भगवान शिव की ‘रौद्र प्रकृति’ को शांत करती है। इसके त्रिफलक पत्ते शिव के त्रिनेत्र और त्रिशूल का प्रतीक होने के साथ-साथ भक्त की भक्ति और समर्पण को दिखाते हैं।

शिव पुराण में भी बेल पत्र का उल्लेख मिलता है। मान्यता है कि बेल पत्र अर्पित करने से पापों का नाश होता है और भक्त को शांति मिलती है।

भोलेनाथ को प्रिय बेल पत्र सेहत के लिए बेहद फायदेमंद है। आयुर्वेद में बेल पत्र और इसके फल को औषधीय गुणों का खजाना माना जाता है। बेल के पत्तों और फल में विटामिन सी, विटामिन ए, कैल्शियम, पोटैशियम, और फाइबर जैसे पोषक तत्व पाए जाते हैं। यह वात, पित्त और कफ दोषों को ठीक करता है।

आयुर्वेदाचार्य बताते हैं कि बेल पत्र में एंटी-इंफ्लेमेटरी और एंटी-ऑक्सीडेंट गुण होते हैं, जो पाचन तंत्र को मजबूत करते हैं और कब्ज जैसी समस्याओं में राहत देते हैं। बेल के पत्तों का रस मधुमेह के रोगियों के लिए भी लाभकारी है, क्योंकि यह ब्लड ग्लूकोज को कंट्रोल करता है।

इसके अलावा, बेल पत्र का इस्तेमाल त्वचा रोगों, सांस संबंधी समस्याओं और सूजन को कम करने में भी किया जाता है। गर्मियों में बेल का शर्बत शरीर को ठंडक प्रदान करता है और डिहाइड्रेशन से बचाता है।