मैं और मेरेपने का अभाव ही आकिंचन है: आचार्य श्री 108 सुबल सागर जी महाराज

Acharya Shri 108 Subal Sagar Ji Maharaj

Acharya Shri 108 Subal Sagar Ji Maharaj

Acharya Shri 108 Subal Sagar Ji Maharaj: मोह के उदय से पर पदार्थों में होने वाली मूर्छा का भाव ही परिग्रह हैं पर पदार्थों में 'मेरे पने का या ममत्व भाव का त्याग ही उत्तम आकिंचन धर्म है। चड़ीगढ़ दिगम्बर जैन मंदिर में पर्युषण महापर्व पर दशलक्षण विधान के साथ आज उत्तम आकिंचन धर्म पर प्रकाश डालते हुए आचार्य श्री सुबलसागर जी महाराज ने कहा कि हे धर्म भव्य स्नेही बन्धुओं सांसारिक वस्तुओं के साथ में और मेरे पन का संबंध भी विसर्जित कर देना और निज शुद्धात्मा ही एक मात्र मेरा है, ऐसी गहन आत्म की अनुभूति का नाम ही आकिंचन्य धर्म है। में और मेरे पने का भाव ही संसार भ्रमण का कारण है।

अगर आप कुछ पाने की जगह सब कुछ पाना चाहते हैं तो इस बात पर जरूर ध्यान दें, किसी को छोड़ो या न छोड़ो पर अंदर की इच्छाओं को जरूर छोड़ना क्योंकि बाहरी वस्तुऐं, छोड़ने से कुछ मिलता है, अंदर की वस्तु छोड़ने से सब कुछ मिलता है, इसलिए छोड़ो तभी आप आकिंचन हो पायेंगे। आत्मा के अलावा इस लोक में कोई भी कुछ भी परिग्रह मेरा नहीं है, ऐसा भाव। यह भाव जब सच्ची श्रद्धा सम्यग्दर्शन के साथ होता है वह ही हमें निज तक पहुचाती हैं। आध्यात्म साधना का चरम रूप ही आकिंचन है। निर्ग्रंथ मुनि महाराज ही इस धर्म के अधिकारी होते है। 
कण-कण स्वतंत्र हैं, अणु मात्र भी मेरा नहीं है! यही धर्म हमें सिखाता है। “जिसने कहा सब तेरा वह तरा” और “जिसने कहा सब मरा  वह मेरा”। न मेरा, न तेरा, ये दुनिया रैन बसेरा। यह जानकारी धर्म बहादुर जैन जी ने दी।

कल दिनांक 28 सितम्बर 2023 दिन  ब्रहस्पतिवार दशलक्षण महापर्व के अन्तिम दिन अनन्त चतुर्दशी के उपलक्ष में दोपहर 3:00 बजे परम पूज्य सन्मतिरत्न सिद्धचक्र आराधक आचार्य श्री 108 सुबल सागर जी महाराज के पावन सान्निध्य में एवं प्रेरणा से भव्य रथ यात्रा श्री दिगम्बर जैन मंदिर सेक्टर 27बी से निकाली जायेगी । यह जानकारी बाल ब्र. गुंजा दीदी ने दी ।

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