म्यूचुअल फंड के बिजनेस में बड़ा बदलाव, निवेशक को फायदा... AMC पर दबाव!

SEBI Rule Change

SEBI Rule Change

SEBI Rule Change: सेबी (सिक्योरिटीज एंड एक्सचेंज बोर्ड ऑफ इंडिया) ने म्यूचुअल फंड के नियमों को आसान, सस्ता और पारदर्शी बनाने के लिए व्यापक बदलाव किए हैं. ये बदलाव निवेशकों के पैसे की सुरक्षा और फायदा बढ़ाने के लिए हैं. बता दें कि आम लोग जो शेयर मार्केट की चाल को ठीक से नहीं पकड़ पाते वो म्यूचुअल फंड के जरिये शेयर मार्केट में निवेश करना पसंद करते हैं.

म्यूचुअल फंड इंडस्ट्री का आकारः 30 सितंबर 2025 तक के आंकड़ों के अनुसार कुल संपत्ति (AUM) 75.61 लाख करोड़ रुपये थी. निवेशकों के खाते (फोलियो) की संख्या 25.19 करोड़ हैं. निवेशकों के हितों की रक्षा के लिए म्यूचुअल फंड विनियमों में नियमित रूप से संशोधन किया जाता रहा है. सभी फंड (सार्वजनिक, निजी या विदेशी) एक ही नियमों के तहत चलते हैं. समय-समय पर सर्कुलर जारी कर निवेशकों को सुरक्षित रखता है.

म्यूचुअल फंड क्या है?:

म्यूचुअल फंड एक तरह का "पैसे का पूल" है. कई लोग थोड़ा-थोड़ा पैसा लगाते हैं, फंड मैनेजर उस पैसे को शेयर, बॉन्ड या अन्य जगहों पर निवेश करता है. निवेशक को "यूनिट" मिलते हैं, और वे "यूनिट होल्डर" कहलाते हैं. फायदा या नुकसान- सबको उनके निवेश के हिसाब से बांटा जाता है. रिस्क कम होता है क्योंकि पैसा कई कंपनियों में बंटा होता है. साथ ही फंड का मैनेजमेंट एक विशेषज्ञ करता है.

भारत में म्यूचुअल फंड का इतिहास:

यूनिट ट्रस्ट ऑफ इंडिया भारत में 1963 में स्थापित पहला म्यूचुअल फंड था. 1980 के दशक के अंत में, सरकार ने सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों और संस्थानों को म्यूचुअल फंड स्थापित करने की अनुमति दी. 1992 में, भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी) अधिनियम पारित किया गया. सेबी का उद्देश्य प्रतिभूतियों में निवेशकों के हितों की रक्षा करना और प्रतिभूति बाजार के विकास को बढ़ावा देना और उसका विनियमन करना है.

सेबी की भूमिकाः

यह निवेशकों के हितों की रक्षा करता है, नियम बनाता है, और म्यूचुअल फंड कंपनियों पर नजर रखता है. म्यूचुअल फंड हाउस आमतौर पर कई योजनाएं लेकर आते हैं जिन्हें समय-समय पर अलग-अलग निवेश उद्देश्यों के साथ लॉन्च किया जाता है. किसी भी म्यूचुअल फंड को जनता से धन एकत्र करने से पहले भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी) के साथ पंजीकृत होना आवश्यक है. 1993 में पहली बार म्यूचुअल फंड के नियम बनाए गये.

नियमों में बदलाव की जरूरत क्योंः

पिछले 29 वर्षों में हुए कई संशोधनों के कारण म्यूचुअल फंड नियम काफी बड़े और जटिल हो गए हैं. इसलिए, सेबी ने म्यूचुअल फंड नियमों की व्यापक समीक्षा करने का काम शुरू किया है.

क्या है मुख्य बदलावः

सेबी ने एक ऐसी संरचना का सुझाव दिया है जो एएमसी को प्रदर्शन-आधारित व्यय अनुपात लागू करने में सक्षम बनाएगी, यह दर्शाता है कि निवेशकों पर उच्च शुल्क तभी लगेगा जब फंड बेंचमार्क रिटर्न से बेहतर प्रदर्शन करेंगे.

सेबी अनुसंधान के लिए दोहरी शुल्क (एक बार प्रबंधन शुल्क के माध्यम से और दूसरी बार ब्रोकरेज के माध्यम से) को रोकना चाहता है, ताकि निवेशकों को छिपे हुए खर्चों से बचाया जा सके. स्पष्ट दिशानिर्देश इस बात की पुष्टि करते हैं कि किसी फंड को लॉन्च करने और उसकी मार्केटिंग की लागत एएमसी द्वारा वहन की जानी चाहिए, न कि निवेशकों द्वारा.

TER यानी Total Expense Ratio – फंड चलाने का सालाना खर्च जो निवेशक से काटा जाता है. सेबी ने इसे घटाया:

स्कीम का प्रकार पहले TER नया TER कटौती
ओपन-एंडेड (इक्विटी) 2.25% 2.10% 0.15%
क्लोज्ड-एंडेड (इक्विटी) 1.25% 1.00% 0.25%
क्लोज्ड-एंडेड (नॉन-इक्विटी) 1.00% 0.80% 0.20%
इंडेक्स फंड/ETF 1.00% 0.85% 0.15%
फंड ऑफ फंड्स (65%+ इक्विटी) 2.25% 2.10% 0.15%
अन्य फंड ऑफ फंड्स 2.00% 1.85% 0.15%

पारदर्शिता बढ़ीः

  • GST, STT, स्टैंप ड्यूटी अब TER से अलग दिखेंगे
  • रिसर्च का डबल चार्ज बंद – अब सिर्फ AMC देगी
  • लॉन्च और मार्केटिंग खर्च फंड से नहीं, कंपनी से वसूला जाएगा
  • एग्जिट लोड वाले फंड में अतिरिक्त 5 bps चार्ज हटाया