Siberian birds in Prayagraj: प्रयागराज। तीर्थराज प्रयाग में पतित पावनी एवं मोक्ष दायिनी गंगा, श्यामल यमुना और अन्त: सलिला स्वरूप में प्रवाहित सरस्वती के त्रिवेणी के तट पर माघ मेले के दौरान कल्पवासियों के संयम, श्रद्धा एवं कायाशोधन का कल्पवास करने वाले कल्पवासियों का स्वागत करने के साइबेरियन पक्षी लिए पहले से ही संगम पहुंच चुके हैं।
Siberian birds in Prayagraj: त्रिवेणी के तट पर कल्पवासियों के हवन, पूजन, साधु-संतों के प्रवचन से जिस प्रकार पूरे मेला क्षेत्र में आध्यात्मिक वातावरण बना रहता है उसी प्रकार दूर देश से प्रयागराज पहुंचे साइबेरियन पक्षियों के कलरव और अठखेलियों से संगम तट गुलजार हो गया है। ऐसा लगता है कल्पवासियों की तरह साइबेरियन पक्षियाें का भी कल्पवास होता है
संगम पहुंचने वाले श्रद्धालुओं के साथ ही विदेशी पर्यटक भी हजारों मील से उड़कर यहां पहुंचे। संगम के जल पर विदेशी मेहमानों के कलरव और अठखेलियों को देखकर पर्यटक एवं श्रद्धालु आनन्द की अनुभूति महसूस करते हैं। इनके पहुंचने से संगम तट के सौंदर्य में और भी निखर आया है। तट पर सुबह से लेकर शाम तक श्रद्धालुओं और पर्यटकों की भीड़ लगी रहती है। शाम ढ़लते यहां का नजारा और भी रमणीय हो जाता है। सात समंदर पार से आने वाले साइबेरियन पक्षियों को घाटों पर देखकर सैलानियों को सुकून मिलता है।
माघ मेले से पहले गुलाबी ठण्ड शुरू होते ही साइबेरियन पक्षी यहां क्रीड़ा करते हुए बिताते हैं और गर्मी शुरू होते ही अपने वतन को लौटना शुरू कर देते हैं। ये मेहमान पक्षी स्वीटजरलैंडए साइबेरियाए जापान और रूस समेत विश्व के अन्य ठंडे देशों से सर्दियों में संगम की ओर कूच करते हैं और गर्मी शुरू होने से पहले अपने वतन लौट जाते हैं।
झूंसी क्षेत्र में कल्पवास करने वाले सुल्तानपुर निवासी रामेश्वर मध्यप्रदेश के रींवा निवासी श्याम बिहारी श्रीवास्तव और राघवेन्द्र ने बताया कि पिछले कई सालों से कल्पवास कर रहे हैं। जब-जब हम कल्पवास के दौरान संगम स्नान करने आये हैं हमें इन सफेद-काले रंग मिश्रण वाली चिडियां गंग के जल पर अठखेलियां करती मिलती हैं। यह इंसानों से बिल्कुल नहीं डरतीं। ऐसा लगता है जैसे कल्पवासियों के साथ इनका भी एक मास का कल्पवास होता है।
रामेश्वर ने बताया कि इनको बेसन से बने सेव बहुत पसंद होते हैं। गंगा के जल में गिराने से यह झुण्ड में एक साथ पहुंच जाते हैं। आवाज लगाकर सेव को अपनी हथेली पर रख कर चुगाने का अपना अलग ही आनंद मिलता है। हथेली पर उड़कर चोंच से जब सेव उठाती हें तब इनके पंखों में लगे गंगा का जल चेहरे पर जब पडता है उस एहसास का वर्णन नही किया जा सकता।
अयोध्या निवासी बुजुर्ग राजेश्वर मिश्र ने बताया कि तुलसी दास ने श्रीरामचारित मानस में माघ मेले का बखान करते बालकाण्ड में लिखा है श्माघ मकरगति रवि जब होईए तीरथपतिहिं आव सब कोईए देवए दनुजए किन्नर नर श्रेणी, सागर मज्जहिं सकल त्रिवेणी। माना जाता है माघ मास में ब्रह़मा, विष्णु, महेश, आदित्य, रूद्रण एवं अन्य सभी देवी देवता माघ मास में संगम स्नान करते हैं। सरयू नदी में ये पक्षी देखने को नहीं मिलते । हम तो यही मानते हैं जिनका सौभाग्य होता है वही माघ मास में त्रिवेणी स्नान का पुण्य पाता है चाहे वह मनुष्य हो या पशु-पक्षी।