मोक्षदायिनी सप्तपुरियों में प्रथम पुरी अयोध्या है, जो कि मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम के भी पूर्ववर्ती सूर्यवंशी राजाओं की राजधानी रही है। इक्ष्वाकु से श्रीराम तक सभी चक्रवर्ती नरेशों ने अयोध्या के सिंहासन को विभूषित किया है। भगवान श्रीराम की अवतार भूमि होकर तो अयोध्या साकेत हो गई। ऐसी मान्यता है कि मर्यादा पुरुषोत्तम के साथ अयोध्या के कीट-पतंग तक उनके दिव्य धाम को चले गए, जिससे पहली बार त्रेता में ही अयोध्या उजड़ गई। श्रीराम के पुत्र कुश ने इसे फिर बसाया। अयोध्या के प्राचीन इतिहास के अनुसार वर्तमान अयोध्या महाराज विक्रमादित्य की बसाई हुई है।
महाराज विक्रमादित्य देशाटन करते हुए संयोगवश यहां सरयू नदी के किनारे पहुंचे थे और यहां उनकी सेना ने शिविर डाला था। उस समय यहां वन था। कोई प्राचीन तीर्थ-चिन्ह यहां नहीं था। महाराज विक्रमादित्य को इस भूमि में कुछ चमत्कार दिखाई पड़ा। उन्होंने खोज प्रारंभ की और पास के योगसिद्ध संतों की कृपा से उन्हें ज्ञात हुआ कि यह अवध की पावन भूमि है। उन संतों के निर्देश से महाराज विक्रमादित्य ने यहां भगवान की लीलास्थली को जानकर मंदिर, सरोवर, कूप आदि बनवाए।
दर्शनीय स्थान : अयोध्या में सरयू किनारे कई सुंदर पक्के घाट बने हुए हैं। किंतु सरयू की धारा अब घाटों से दूर चली गई है। पश्चिम से पूर्व की ओर जाने पर घाटों का यह क्रम मिलेगा-ऋणमोचन घाट, सहस्र धारा, लक्ष्मण घाट, स्वर्गद्वार, गंगा महल, शिवाला घाट, जटाई घाट, अहल्याबाई घाट, धौरहरा घाट, रूपकला घाट, नया घाट, जानकी घाट और राम घाट।
लक्ष्मण घाट : यहां के मंदिर में लक्ष्मणजी की पांच फुट ऊंची मूर्त है। यह मूर्त सामने कुंड में पाई गई थी। ऐसी मान्यता है कि यहां से लक्ष्मणजी परमधाम पधारे थे।
स्वर्गद्वार : इस घाट के पास श्रीनागेश्वरनाथ महादेव का मंदिर है। ऐसी मान्यता है कि यह मूर्त कुश द्वारा स्थापित की हुई है और इसी मंदिर को पाकर महाराज विक्रमादित्य ने अयोध्या का जीर्णोद्वार किया। नागेश्वरनाथ के पास ही एक गली में श्रीराम चंद्र जी का मंदिर है। एक ही काले पत्थर में श्रीराम पंचायतन की मूर्तियां हैं। बाबर ने जब जन्म स्थान के मंदिरों को तोड़ा, तब पुजारियों ने वहां से मूर्त उठाकर यहां स्थापित कर दीं। स्वर्गद्वार घाट पर ही यात्री पिंडदान करते हैं।
अहल्याबाई घाट : इस घाट से थोड़ी दूरी पर त्रेतानाथ जी का मंदिर है। ऐसी मान्यता है कि भगवान श्रीराम ने यहां यज्ञ किया था। इसमें श्रीराम-जानकी की मूर्त है।
नया घाट : इस घाट के पास तुलसीदास जी का मंदिर है। इससे थोड़ी ही दूरी पर महात्मा मनीराम का आश्रम है।
रामकोट : अयोध्या में अब रामकोट (श्रीराम का दुर्ग) नामक कोई स्थान रहा नहीं है। कभी यह दुर्ग था और बहुत विस्तृत था। ऐसी मान्यता है कि उसमें बीस द्वार थे, किंतु अब तो चार स्थान ही उसके अवशेष माने जाते हैं- हनुमानगढ़ी, सुग्रीव टीला, अंगद टीला और मत्तगजेंद्र।
हनुमानगढ़ी : यह स्थान सरयू तट से लगभग एक मील की दूरी पर नगर में है। यह एक ऊंचे टीले पर चार कोट का छोटा-सा दुर्ग है। साठ सीढ़ी चढऩे पर हनुमानजी का मंदिर मिलता है। इस मंदिर में हनुमानजी की बैठी मूर्त है। एक दूसरी हनुमान जी की मूर्त वहां है, जो सदा पुष्पों से आच्छादित रहती है। हनुमानगढ़ी के दक्षिण में सुग्रीव टीला और अंगद टीला है।
कनक भवन
यही अयोध्या का मुख्य मंदिर है, जो ओरछा नरेश का बनवाया हुआ है। कनक भवन सबसे विशाल एवं भव्य मंदिर है। इसे श्रीराम का अंत:पुर या सीताजी का महल कहा जाता है। इसमें मुख्य मूर्तियां सीता-श्रीराम की हैं। सिंहासन पर जो बड़ी मूर्तियां हैं, उनके आगे सीता-श्रीराम की छोटी मूर्तियां हैं। छोटी मूर्तियां ही प्राचीन कही जाती हैं।
दर्शनेश्वर
हनुमानगढ़ी से थोड़ी दूरी पर अयोध्या नरेश का महल है। इस महल की वाटिका में दर्शनेश्वर महादेव का सुंदर मंदिर है।
जन्म स्थान
कनक भवन से आगे श्रीराम जन्मभूमि है। यहां के प्राचीन मंदिर को बाबर ने तुड़वाकर मस्जिद बना दिया था, किंतु अब यहां फिर श्रीराम की मूर्ति आसीन है। इस प्राचीन मंदिर के घेरे में जन्मभूमि का एक छोटा मंदिर और है। जन्म स्थान के पास कई मंदिर हैं-सीता रसोई, चौबीस अवतार, कोपभवन, रत्न सिंहासन, आनंद भवन, साक्षी गोपाल आदि।
तुलसी चौरा
राजमहल के दक्षिण खुले मैदान में तुलसी चौरा है। यही वह स्थान है, जहां गोस्वामी तुलसीदास जी ने श्रीरामचरित मानस की रचना प्रारंभ की थी।