महापुरुष हर युग में यह आवाज देते रहे हैं कि ऐ इन्सान, तूने इस दौलत की प्राप्ति करनी है। यह ही तुझे लोक-परलोक में मालामाल करने वाली है। अगर यहां इस दौलत की प्राप्ति नहीं की तो आगे क्या हासिल होगा। दास अक्सर कहता है कि किसी पूछने वाले ने अपने उस्ताद से, साधु-महात्मा से पूछा कि मौत के बाद जीवन क्या होता है? तो आगे से उस्ताद ने कहा कि आप फिक्रमन्द हैं इस मौत के बाद के जीवन के लिए लेकिन मुझे फिक्र है उस मौत से पहले के जीवन की। इस बात की अधिक अहमियत है।
अगर इस जीवन की प्राप्ति यथार्थ है तो आगे की कोई फिक्र नहीं रहती। लेकिन इस जन्म में इन्सान लगा है भौतिक दौड़ में। कोई धन हासिल करने में लगा है, कोई ताकत हासिल करना चाहता है। इन्हीं प्राप्तियों के लिए ही यह कार्य करता रहा है और अन्त में इसके हाथ कुछ नहीं आता। इसलिए महात्मा कहते हैं कि ऐ इन्सान, जो चाल तू चल रहा हे, यह तुझे कहीं ले जाने वाली नहीं। इससे तो तुम चौरासी के गेड़ (बन्धन) में ही पड़े रहोगे। तुम्हारी आंखों पर अज्ञानता की पट्टी बंधी रहेंगी, अंधकार कायम रहेगा और तुम ठोकरें खाते रहोगे।
जब तक रोशनी प्राप्त नहीं होगी, ठोकरें बनी रहेगी। नाम की दौलत हाथ न आई तो कंगाल ही बने रहोगे। सांसारिक दौलतें तो अधूरेपन की ही निशानी है। जैसे सिकन्दर बादशाह की मिसाल आती है कि जब वह दुनिया को फतह करने की तैयारी में था तो उसका एक मित्र जो फिलॉस्फर (दार्शनिक) था, सूझवान था, उसको ऐसा करने से रोकने के लिए समझाने लगा लेकिन सिकन्दर नहीं माना। कहने लगा कि मैंने तो ठान लिया है कि मैंने तो दौलतों के अम्बार लगाने है, सारी दुनिया को अपने आधीन करना है। उसका मित्र कहने लगा, अगर जाने की ठान ही ली है तो एक राय मान लो। यहां नजदीक ही एक साधु-महात्मा है। जाने से पहले आप उससे मिल लें। दोस्त की बात मानकर सिकन्दर उस महात्मा के पास चल पड़ा। जैसे ही वह वहाँ पहुंचा, बैठे हुए सभी लोग खड़े हो गये लेकिन वह महात्मा बैठा रहा। यह देखकर सिकन्दर तिमिला उठा तथा गुस्से में आकर कहने लगा, तू जानता नहीं कि मैं राजा हूं।
सारे मेरे सम्मान में खड़े हुए हैं और तू इतना अदब भी नहीं जानता, यह कहकर वह वापिस चल पड़ा। सिकन्दर के उस मित्र ने साधु महात्मा से कहा, यह आपने क्या किया। बादशाह का स्वागत भी नहीं किया। वह तो आपसे बहुत गुस्सा है। यह सुनकर आगे से वह साधु-महात्मा बोला, अगर राजा मेरे पास आता तो मैंने अवश्य उसके स्वागत में खड़ा होना था, उसके पांव चूमने थे पर तू तो एक कंगाल को मेरे पास लेकर आया है। वह मित्र बहुत हैरान हुआ तो महात्मा ने समझाया, वह कंगाल नहीं तो और क्या था। उसके पास दौलत के अम्बार तो पहले से ही लगे हुए हैं फिर भी यह दौलत इक_ी करने की दौड़ में लगा हुआ है।
पता नहीं कितने लोगों का खून चूस-चूस कर यह हीरे-जवाहरात आदि लूट कर लायेगा? कितनी अबलाओं की मांगों का सिन्प्दूर पोंछेगा, कितनों को अनाथ बनायेगा। इस प्रकार दौलत प्राप्त करने के बाद भी यह कंगाल ही रहेगा। कहने का भाव, ऐ इन्सान, तू इस सांसारिक दौलत की प्राप्ति के लिए ही न लगा रह बल्कि इस जन्म में नाम रुपी दौलत की प्राप्ति करके मालामाल हो जा, जिसके लिए कहा गया है कि
एही तेरी अवसर एही तेरी वार,
घर भीतर तूं सोच विचार।