Has devious China improved?: क्या चीन सुधर चुका है? यह सवाल पूछा जाना चाहिए। हालांकि इसका जवाब देते हुए हां नहीं कहा जाना चाहिए। चीन की चाल भारत बखूबी जानता है और अब पूरी दुनिया जान चुकी है। उसका सच यह है कि हमेशा सच्चाई को छिपाते रहो, फिर चाहे वह दुनिया हो या फिर उसके अपने निवासी।
दरअसल, चीन ने आखिर नौ महीने बाद ही सही लेकिन यह स्वीकार किया है कि बीते वर्ष गलवान घाटी में भारतीय और चीन सैनिकों के बीच हुए संघर्ष में उसके सैनिक मारे गए हैं। अब यह और बात है कि चीन ने अपने सैनिकों की संख्या सिर्फ पांच बताई है। हालांकि भारतीय सेना के बीस जवान इस दौरान शहीद हुए। दरअसल, उस समय विदेशी समाचार एजेंसियों के हवाले से यह सामने आया था कि चीन के चालीस से ज्यादा सैनिक इस संघर्ष में मारे गए हैं। हालात ऐसे थे कि चीन ने उस समय यह स्वीकार करने से पूरी तरह इनकार कर दिया था कि उसके सैनिक भी हताहत हुए हैं।
चीन के मीडिया ने भ्रमित करने वाली और अपने देश की सेना की करतूत को छिपाने वाली रिपोर्ट पेश की थी। यह भी कहा गया था कि चीन जानबूझ कर ऐसा कर रहा है, ताकि उसके विरोधी यानी भारत के नागरिकों को और ज्यादा तकलीफ न हो। इसे यूं पेश किया गया था कि अगर भारत को यह मालूम होगा कि चीन के सैनिकों को कोई नुकसान नहीं पहुंचा है तो यह भारतीयों के लिए और ज्यादा तकलीफदेह होगा। हालांकि चीन का यह झूठ अब सामने आ चुका है। उस संघर्ष में भारतीय सैनिकों के शौर्य जबकि वे निहत्थे थे, के दौरान न केवल चीन के 40 से ज्यादा सैनिक मारे गए थे, अपितु उनका कमांडर स्तर का सैन्य अधिकारी भी मारा गया था। सैनिक चाहे किसी भी देश के हों, लेकिन उनके बलिदान को अगर कोई देश और उसकी सरकार इस प्रकार तुच्छ करके छिपाती है तो यह बेहद शर्मनाक और हेय है।
गलवान घाटी में जो हुआ वह बेहद दुर्भाग्यपूर्ण था। भारतीय जवानों ने अपने प्राणों का बलिदान देकर देश और उसकी संप्रुभता की रक्षा की। हालांकि देश के अंदर राजनीति ने उनके इस बलिदान का उपहास बना दिया। यह तक पूछा गया कि आखिर उन सैनिकों को निहत्थे किसने सीमा पर भेजा था। कांग्रेस की ओर से यह सवाल उठाया गया। यह भी कहा गया कि केंद्र सरकार ने उन सैनिकों को ऐसे हालात में झोंका। भारत के चीन के समक्ष कमजोर पडऩे और अपनी जमीन ड्रैगन को सौंपने का आरोप भी विपक्ष ने लगाया।
हालांकि समय के साथ अब जब चीन का झूठ सामने आ रहा है तो विपक्ष के आरोपों का सच भी उजागर हो रहा है। यह बेहद शर्मनाक और चिंताजनक है कि विपक्ष अपने ही देश की सरकार पर न्यूनतम भरोसा तक नहीं करता। जबकि यह तय है कि विदेश नीति के मामले में देश में कोई भी सरकार बने, वह चीन और पाकिस्तान के प्रति कभी न नरम पड़ी है और न ही पड़ेगी। अब जब पैंगोंग झील के पास से चीन पीछे हट गया है, तब भी विपक्ष को इस पर यकीन नहीं हो रहा।
कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने चीन के पीछे हटने के बावजूद मोदी सरकार पर चीन के सामने झुकने का आरोप लगाया है। उन्होंने प्रधानमंत्री के संबंध में जिस प्रकार की अमर्यादित भाषा का प्रयोग किया है, पूरे देश ने उसे देखा और समझा है। क्या चीन ऐसी हिमाकत पूर्व की कांग्रेस सरकारों के वक्त ही करना नहीं सीख गया था, अगर उसी समय चीन की आंखों में आंखें डालकर बात कर ली जाती तो आज तस्वीर कुछ और होती। लेकिन मौजूदा सरकार अगर यह काम कर रही है, तब भी विपक्ष इस दौरान सरकार के साथ खड़ा नहीं हो रहा। वह इसके लिए भी सीधे सेना की पीठ थपथपाता है। हालांकि राजनीतिक नेतृत्व के बैकअप के बगैर भारत में सेना एक कदम भी आगे नहीं बढ़ सकती। राजनीतिक नेतृत्व की मजबूती सेना के साहस को बुलंदियों पर पहुंचाती है।
जाहिर है, चीन के पीछे हटने का कोई राज है। एक बात आज के वक्त में पूरी दुनिया समझ गई है कि चीन बेहद स्वार्थी और अपने हित में ही काम करने वाला देश है। कोरोना संक्रमण के वक्त उसने मेडिकल उपकरणों और अन्य वस्तुओं की बिक्री के जरिए जिस तरह मुनाफा कमाया है, वह उसकी इस प्रवृति को उजागर करता है। बदले हालात में अमेरिका ने जिस प्रकार चीन से तटस्थ रवैया अपनाया है, वह भी उसे परेशान कर रहा है।
अमेरिका और भारत के बीच के रिश्ते अब तार्किक हो गए हैं, दोनों देश इस जरूरत को समझते हैं कि उनके पास आने में ही भलाई है। हालांकि भारत की आर्थिक महाशक्ति बनने की संभावनाओं ने भी चीन और पाकिस्तान के हौसले पस्त किए हैं। चीन अब दुनिया में अलग-थलग पड़ चुका है वहीं पाकिस्तान की आर्थिक हालत बेहद नाजुक है। ऐसे में भारत से दुश्मनी रखना और उसे निभाना चीन और पाकिस्तान के लिए भारी ही पड़ रहा है।
यही वजह है कि चीन ने पैंगौंग झील के आसपास जहां पीछे हटने में ही भलाई समझी है वहीं अब वह पूर्वी लद्दाख में हॉट स्प्रिंग्स, गोग्रा और देपसांग क्षेत्रों से भी पीछे हटने के लिए भारत के साथ बातचीत की मेज पर है। इस समय चीनी सेनाएं पैंगोंग इलाके के साथ-साथ रेजांग ला और रेचिन ला से पीछे हट चुकी हंै। हालांकि भारत ने भी अपनी सेनाओं को पीछे हटाया है, यह सब भारत की मांग और उसकी शर्तों के मुताबिक ही हो रहा है। दरअसल, मौजूदा सरकार का मकसद सिर्फ चीनियों को पीछे धकेलने का नहीं होना चाहिए, अपितु उसे चीन के साथ अपने सभी सीमा विवादों को सुलझाने के लिए भी काम करना चाहिए। अरुणाचल प्रदेश में चीन के साथ भारी सीमा विवाद है, हालात यह हैं कि चीन उसे भारतीय प्रदेश मानने तक को तैयार नहीं है। जाहिर है, चीन की यह चालबाजियां कभी बंद नहीं होंगी। खुद को मुश्किल में पाकर चीन नरम हो जाता है, लेकिन हालात बदलते ही वह अपना असली रंग दिखाता है। चीन की नरमी छलावा हो सकती है, भारत को सचेत रहते हुए उससे मुकाबला करना होगा।