भक्तों के हृदय में सर्दव मानवता के उत्थान के लिए ऐसी भावना रहती है कि संसार में बसने वाले इन्सान इस जन्म का लाभ प्राप्त कर लें। मनुष्य जन्म के रुप में यह जा सुनहरी अवसर मालिक ने प्रदान किया है, इस जन्मए में ये अपनी आत्मा का कल्याण करे। आत्मा जो अपने मूल परमात्मा से बिछड़ी हुई है, अपने मूल से अन्जान है जिस कारण इसकी भटकन बनी हुई है। इस शरीर में रहते हुए भी यह भटकन में रहती है तथा शरीर छूटने के बाद भी यह भटकन कायम रहती है। इस भटकन से निजात प्रदान करने के लिए महापुरुष इन्सान को यह पैगाम देते आये हैं कि ऐ इन्सान, तूने अपनी आत्मा का कल्याण करना है और इस मानुष जीवन के महत्व को बढ़ाना है।
प्रभु-परमात्मा ने इन्सान को दिमाग प्रदान किया है, मन प्रदान किया है, इस के द्वारा इस जन्म को संवारना है। भाव, इसके विचार भी शुद्ध हो तथा मन के भाव भी प्रेम तथा सत्कार वाल हों। तभी इस मनुष्य जन्म के रुतबे को ऊंचाई प्राप्त होती है। दिमाग को कहते हैं- विचार की क्षमता और हृदय को कहते हैं- भाव की क्षमता। दिमाग में हर समय विचार आते रहते हैं। देखना है कि कितने विचार ऐसे है जो कल्याणकारी होत हैं।
हृदय को भाव की क्षमता कहा गया है। एक हृदय में कैसे-कैसे भाव उठते हैं कदूरत वाले, घृणा वाले, नफरत वाले। महापुरुष-सन्तजन कहते हैं कि ऐ इन्सान, यह जो दिल और दिमाग मालिक ने प्रदान किया है, इन्हें अगर तू सत्य के साथ जोड़ लेता है, ईश्वर के साथ जोड़ लेता है तो इसमें कल्याणकारी विचार, शुद्ध विचार आते हैं। मन का नाता सत्य के साथ जुड़ा हो तो मन के भाव भी सुन्दर बन जाते हैं। इस प्रकार इस शरीर की चाल को सुन्दरता प्राप्त होती है।
आज संसार की हालत हम देखते हैं कि इन्सान ने बहुत तरक्कियां की हैं और इसी से सोच लिया है कि मैं बहुत सीढयि़ां चढ़ गया हूं। लेकिन वास्तव में इसने अपनी हालत बदतर कर ली है। इसने इन्सानी रुतबे को कलंकित कर लिया है, हर जगह यह हाहाकार मचाने में ही लगा हुआ है। हर तरफ जुल्मों सितम ही हो रहा है। अविवेकशील होकर यह उपद्रव ही करता जा रहा है। कितनी जंगे हुई हे, कितने भयंकर हथियारों का निर्माण हुआ है। इतने बड़े बड़े हथियार भी तो दिमाग की ही सोच है, जो कि विनाशकारी सिद्ध हो रहे हैं। यह सिलसिला आज हमें घर-घर में देखने को मिल रहा है। कितना पैसा, कितनी दौलत इस पर लग रही है। अगर यही दौलत उत्थान पर लगती तो हिन्दुस्तान तथा ऐसे अनेकों पिछड़े हुए मुल्क कितनी तरक्की कर चुके होते। यह दौलत हथियार बनाकर लोगों को आतंकित करने की बजाए रोटी, कपडा, मकान की ओर, इन्सान को आराम देने की ओर लगती तो इन्सान कितना सुखी हो जाता।
आज इन्सान के दिल और दिमाग की सोच ऐसी बन चुकी है, जिससे इन्सान पीड़ित लग रहा है। इसकी दुर्दशा हो रही है तथा हर ओर नुकसान हो रहा है। लालसायें, खुदगर्जियां हृदय में ऐसे बस चुकी हैं कि इन्सान के पास अपने सिवाय कोई सोच बाकी ही नहीं बची है। किस कदर किसी को ताकत चाहिए, किसी को ताकत बनाये रखना है और किसी की ताकत छीननी है। कोई अपने मुल्क की सरदारी चाहता है तो कोई और कोई ताकत। बस ऐसे ही भाव इन्सन के मन में बस चुके हैं और इससे नुकसान हो रहा है।