सन्त औरों की सोच पहले रखते आए हैं, निष्काम सेवा करते आए हैं, दूसरों की पीड़ा महसूस करते आए हैं। जैसे वो भी मिसाल कई बार दी गई कि-
सन्त हृदय नवनीत समाना।
सन्त का हृदय मक्खन के समान होता है। तो उसकी यह मिसाल दी गई कि एक मक्खन की टिकिया को आंच लगे तो वह टिकिया पिघल जाती है। लकिन इससे एक कदम आगे बता रहे हैं कि वहां तो जिस मक्खन की टिकिया को आंच लगती है वो पिघलती है लेकिन सन्त हृदय ऐसे होते हैं कि आंच किसी और को लगती है और पिघल ये जाते हैं। जैसे-
दुख तेरा हो कि मेरा हो, दुख की परिभाषा एक है।
आंसू तेरे हों कि मेरे हों, आसुंओं की भाषा एक है।
इस प्रकार से सन्त दूसरे के दुख, दूसरे की पीड़ा को हरते हैं। दूसरों को चैन-सुकून देने के लिए, राहत देने के लिए निस्वार्थ भाव से अपने योगदान देते हैं जैसे कि यहां पर भी लगातार ऐसी देन दी जा रही है। यहां मानवता की निस्वार्थ सेवा पर ध्यान दिलाया जाता है। ये सेवादल नि:स्वार्थ भाव से, निष्काम भाव से, कामनाओं से ऊपर उठ कर, कोई मन में मान न रखते हुए, इसके एवज में कोई दुनियावी वाह-वाह या जय-जयकार की भूख न रखते हुए सेवा किए चले जा रहे हैं, दिए चले जा रहे हैं, मानवता के लिए इस प्रकार से योगदान दिए चला जा रहे हैं। किसी भी रुप में ऐसे योगदन दिए जाते हैं, उनका अपना एक महत्व हुआ करता है और साथ में यह सब कुछ करके भी विनम्रता बनी रहती है, अकर्ता भाव बना रहता है, दास भावना बनी रहती है, ये इसके बदले में कुछ नहीं चाहते हैं।
इस प्रकार से देते चले जाते हैं और एहसान भी नहीं जताते, सन्तों ने हमेशा यही किया है, सज्जन प्रवृत्ति वालों ने हमेशा यही किया है और उसके एवज में दुनियावी कुछ नहीं चाहा। हमेशा यही चाहा कि यह मालिक जो चाहे करवा सकता है। यह मुझे साधन बना ले, इस साधन से काम ले ले। मैं मानवता के काम आ जाऊं, मेरा तन काम में आ जाए, मेरा धन काम में आ जाए, मेरी विद्वत्ता काम में आ जाए। इस प्रकार ये दूसरों को चैन-सुकून और राहत देने के जज्बो होते हैं, ये भावनायें होती हैं। यही एक शक्ति हमें मिलती है, यह ताकत हमें मिलती है, इस आध्यात्मिकता के कारण, इस एक परमात्मा से नाता जोडऩे के कारण और यह शक्ति हमें प्राप्त होती है, जब हम इसके संग होते हैं। एक कविने बहुत सुन्दर पंक्तियां लिखी हैं-
पंछी उड़ते पंख से मैं उड़ती बेपंख। जब मैं पी के संग हूं तो मेरे पंख असंख।
कि पक्षी पंखों से उड़ते हैं और मैं बेपंख उड़ रही हूं फिर भी मैं बेपंख नहीं हूं क्योंकि मैं पिया के संग हूं और जब पिया के संग हूँ तो मेरे दो पंख नहीं, मेरे असंख्य पंख लग गए हैं। अगर दूसरी दृष्टि से देखें तो जब लाखों की संख्या में आप सभी परोपकार कर रहे हैं तो ये पंख ही तो हैं जो उड़ा रहे हैं, जो जगह-जगह पर सुकून फैला रहे हैं, जो इस सत्य के साथ जोड़ रहे हैं, भ्रमों से निज़ात प्रदान कर रहे हैं। इस तरह से यह हमारे जीवन का एक महत्वपूर्ण रुप है। इसकी महत्ता का एहसास
करते हुए हम आगे से आगे बढ़ते चले जाएं ।