बोल चाल ऐसी होनी चाहिए कि दूसरे पर एक अलग छाव ही छोड़ जाए। जैसे उदाहरण के तौर पर कोयल और कांव की जाति एक ही होती है और रंग भी एक होता है लेकिन जब कहीं पर कांव दिखाई देता हैं तो उसकी कांव कांव हर एक के कान में कड़वी वाणी की तरह चुभती हैं और सभी को दूर भगा देते हैं और एक वहीं काले रंग की कोयल हैं जिसकी वाणी को सुनने के लिए समाज का हर वर्ग व हर प्रकार का इंसान सुनकर एक आनंद की अवस्था से सरोकर हो उठता हैं।
कोयल के कालेपन को उसकी मधुर वाणी ने इस तरह से ढक दिया। उसी प्रकार हमारी कई प्रकार की कमजोरियां होती हैं जो कि हम अपने मधुर व अच्छे स्वभाव के कारण ढक सकते हैं। ये शब्द मनीषी संत मुनिश्री विनय कुमार जी आलोक ने सैक्टर 24सी अणुव्रत भवन तुलसी सभागार मे सभा को संबोधित करते हुए कहे।
मनीषी श्रीसंत ने आगे कहा हमारी बोल चाल ही हमारे सभी कार्यो में एक महत्वपूर्ण रोल अदा करती है चाहे वह इंटरव्यू हो चाहे समाज में कोई भी कार्य हो जीवन के हर एक पहलू में में हमारी बोल चाल ही सबसे महत्वपूर्ण होती है। इसलिए जब भी बोले तो सोच समझ कर बोले तोल कर बोले। क्योंकि हम नहीं जानते कि हमारे बोले हुए वचन किसके लिए जीवन में क्या प्रभाव डालते हैं यह सिर्फ ही जानते हैं। हम इस समाज में रहते हुए अगर इस जीवन रूपी यात्रा को सफल करना है तो हमे हर एक से प्यार ए करूणा से पेश आना होगा। सभी से मिलकर व साथ लेकर आगे बढऩा होगा। तभी ही हम सही इंसान कहने योग्य हो सकते हैं।
मनीषीश्रीसंत ने कहा वाणी जितनी मधुर व सुरीली होगी उतना ही इंसान जीवन में हर सफलता को प्राप्त कर सकता है। क्योंकि ईश्वर ने भी जीभा में कोई हुड्डी वगैरा नहीं लगाई हैं क्योंकि इसका काम सिर्फ और सिर्फ प्यार की वर्षा बरसाना है। ईश्वर ने हमारे शरीर में हर एक अंग की अपनी महत्वा को बताया है। मुंह सिर्फ इसलिए एक दिया है कि हम कम से कम बोले और कान दो इसलिए दिए हैं कि हम ज्ञान की बातें अधिक से अधिक सुने और उन्हें अपने जीवन में अमल में लाए। शरीर के हर अंग की अपनी महत्वा हैं। हम जीवन में अपनी बोल चाल को इस तरह से दर्शाए कि सामने वाला पर इसका एक अच्छा प्रभाव पड़े।
मनीषी श्रीसंत ने अंत में फरमाया जो कुछ भी बोले वह सोच समझकर बोले क्योंकि धनुष से निकला वाणी व मुंह से निकला वचन कभी वापिस नहीं आता हैं। हम इतिहास को खोल कर देख ले तो जितने भी युद्ध के कारण बने वह सभी कठोर शब्दो से हुए हैं जैसे महाभारत में द्रोपती के वो शब्द दुर्याधन को एक तीखे तीर की तरह लगे जिसमें उसने कहा था कि अंधे की औलाद अंधी। तो उसका क्या अर्थ निकला एक घमासान युद्ध जिसमें कि लाखो लोगो को काल के गाल में समाना पडा और कितने ही बच्चे, मां , बहने के भाईयों से हाथ धोना पडा। आज भी समाज ए घर पडोस में जितने भी झगडे होते हैं उनका मूल कारण कठोर शब्द। इसलिए हे इंसान अगर इस समाज में रहते हैं संसार की यात्रा को सफल करना है तो याद रख कि जो भी बोले अच्छा बोले, जो भी देखे तो अच्छा देखे, जो भी कार्य करे अच्छा कार्य करे।